चैतन्य महाप्रभु 15वीं सदी के एक भारतीय संत थे, जिन्हें उनके शिष्यों और विभिन्न ग्रंथों द्वारा राधा और कृष्ण का संयुक्त अवतार माना जाता है। चैतन्य महाप्रभु की भजन – कीर्तन और नृत्य के साथ कृष्ण की पूजा करने की पद्धति का बंगाल में वैष्णववाद पर गहरा प्रभाव पड़ा । वह अचिंत्य भेद अभेद तत्व के वेदांत दर्शन के मुख्य प्रस्तावक भी थे । महाप्रभु ने गौड़ीय वैष्णव धर्म की स्थापना की( उर्फ ब्रह्म –माधव-गौड़ीय संप्रदाय )। उन्होंने भक्ति योग की व्याख्या की और हरे कृष्ण महा-मंत्र के जाप को लोकप्रिय बनाया । उन्होंने शिक्षाष्टकम् (आठ भक्ति प्रार्थनाएँ) की रचना की।
चैतन्य को उनके पिघले हुए सोने जैसे रंग के कारण कभी-कभी गौरांग या गौरा भी कहा जाता है। उनके जन्मदिन को गौर-पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है । उन्हें निमाई भी कहा जाता है क्योंकि उनका जन्म नीम के पेड़ के नीचे हुआ था।







